जन्माष्टमी के रंग

भारत अपनी संस्कृति और अपने विभिन्न तरह के त्योहारों के कारण विश्व में अत्यधिक जाना जाता है । यहाँ अलग अलग धर्म व् संस्कृति के रंग फैले हुवे है , हम हिंदुओं में ही अलग अलग भगवान् को मानने वाले और उनकी आराधना करने वाले लोग रहते है । किंतु जब त्योहारों की बात आती है तो सब मिलकर इन त्योहारों को बड़ी ही धूम धाम से मनाते है , हम हर साल अनेकों त्योहारों को मनाते है जो हम्हारी न केवल सभ्यता और संस्कृति को दर्शाती है बल्कि ये हम्हारी आस्था के भी प्रतीक है । इन्ही सब त्योहारों में से एक है कृष्ण जन्माष्टमी।
मान्यता है आज ही के दिन भगवान् विष्णु ने धर्म की स्थापना के लिए कृष्ण का अवतार लेकर धरती पर जन्म लिया था । कृष्ण देवकी की आठवीं संतान थी , कृष्ण का जन्म कंस की कारावास में हुवा था जहाँ उनके माता पिता को कंस ने बंद करके रखा था । कृष्ण को उनके पिता जन्म के तुरंत बाद कंस के भय  से  वृन्दावन यशोदा मैया के पास देकर आ गए थे जहाँ इनका पालन पोषण हुवा  इसीलिए मथुरा और वृन्दावन इनके प्रिय स्थान माने जाते है ।
श्री कृष्ण के जन्म के कारण ही तब से लेकर अब तक इस दिन को सभी लोग कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है । आज के दिन केवल भारत में ही नही अपितु देश विदेश में रहने वाले कृष्ण भक्त भी इस दिन को बड़ी प्रसन्नता और उल्लाश  के साथ मनाते है । कृष्ण जन्मास्टमी के रंग पुरे देश में अलग अलग रूप में देखने को मिलते है , आज के दिन के लिए कृष्ण मंदिरों को कई दिनों पहले से ही सुंदरता के साथ सजाना सुरु कर दिया जाता है । तरह तरह के फूलों और जगमगाती लाइट्स मंदिरों को सुंदरता की चादर में ओढ़ लिया जाता है , भारत के अलग अलग शहरो में इस दिन के रंग अलग अलग होते है खासकर मथुरा और वृन्दावन में ,कृष्ण जन्माष्टमी बड़ी ही धूम दाम से मनाई जाती है , दूर दूर से लोग यहाँ आकर आंनद के इस उत्सव में सम्मलित होते है ।
क्योंकि भगवान् कृष्ण बच्चपन से ही बहुत नटखट थे और उन्हें दही और मक्खन बहुत अधिक प्रिय थे , इसिलए आज के दिन जगह जगह मटकी में दही या मक्खन डाल कर  मटकी फोड़ आदि प्रतियोगिताए होती है । कहते है कि भगवान् कृष जन्म रात्रि के समय में हुवा था इसी लिए आज उनके भक्त पुरे दिन उपवास रखके उनकी आराधना भी करते है तत्पश्चात श्याम व् रात्रि के समय में सभी लोग आपस में बैठकर भचं कीर्तन करते है ।
कहीं कहीं कई जगहों पर भगवान् श्री कृष्ण के लिए पालकी बनाकर उस पालकी में उनकी मूर्ति को झूला झुलाया जाता था । ऐसे ही कुछ इस तरह से आज के दिन हर कोई कृष्ण भक्ति के इस रंग में रंगा होता है । 

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