मन है कि मानता नही ।

 कहते है कि मन के हारे हार है और मन के जीते जीत । अर्थात सब कुछ हम्हरे मन पर निर्भर करता है , चाहे आपकी सफलता हो या फिर निराशा , दुःख हो या सुखःऔर साहस हो या फिर डर सब और सब कुछ निर्भर करता है आपके मन पर , हालांकि मन सुनने में तो छोटा सा शब्द लगता है लेकिन ये छोटा सा शब्द आपके पूरे शरीर को चलता है , ये मन ही तो है जो कभी आपको बैठे बैठे ही हजारों किलोमीटर का सफर पल भर में कर लेता है , तो कभी कभी कल्पनाओ के संसार में पहुंचा देता है , इसीलिए कहा जाता है कि मन को थोड़ा पकड़ कर रखो ये मन ही है जो संभाले नही संभलता , ये मन ही तो है जो खूबसूरत लड़की को देखते ही उसके पीछे चला जाता है या फिर कोई नही चीज को देखते ही उसे पाने की कोशिश करता है ।
क्या आपने कभी सोचा है हम्हारे जीवन में होने वाली हर एक अच्छी और बुरी घटना केवल और केवल हम्हरे मन की उपज है । पर ये मन है कि मानता ही नही बस जब देखो कुछ खुरापाती करने की सोचता रहता । कभी भी जब इसका बस चले किसी के भी पीछे चला जाता है , कभी पढ़ाई के समय खेल में चला जाता है तो कभी क्लास रूम में किसी के खयालों में ,और तो और रोज रात को एक दूसरी ही दुनिया में चला जाता है तो कभी दिन में ही सपने दिखा देता है , हम जितना भी इसे रोकने की कोशिस करें पर ये कमबख्त रुकने वाला कहाँ ।
मन है ही ऐसी चीज एक बार जो इसको भा गया उसको पाने के लिए रात दिन एक कर लेता है । हम कितना भी कोशिस करते रहे की शांत रहे पर ये मन है कि ऐसा होने ही नही देता।
हालांकि मन शब्द सुनने में छोटा है , पर गजब की बात यह है कि पूरी दुनिया में शायद ही कोई ऐसे लोग होंगे जिनके मन पुरे तरह से एक दूसरे से मिलते हो , मन के अनेक रूप है कभी ये चंचल हो जाता है , तो इससे मस्ती सूझती है , तो कभी गंभीर होकर चिंतन करने लगता , कभी किसी की बात मन में लग जाए तो गुस्से से मुंह लाल हो जाता है कभी अगर किसी पर प्यार आ जाए तो उसके लिए सब कुछ करने के लिए तैयार हो जाता है , । ये मन चीज ही ऐसी है । चंचलता तो मानो इसका जन्म सिद्ध अधिकार हो ।
पर चाहे कितना भी कह लो ये मन है कि मानता नही ।।

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