कहि खो न जाए बचपन ।

आज लगता है मानो समय न जाने कितना बदल गया है । वक्त के साथ साथ लोगों में भी काफी बदलाव आया है , फिर चाहे बात उनके व्यवहार की हो या फिर जिंदगी जीने के तरीकों की , यदि बात पहले की करे तो एक अलग ही माहौल हुवा करता था , सुबह के साथ ही बच्चो का शोर सुनाई देने लगता था इन्हें न धुप देखती थी न ही बारिश बस अपनी मस्ती में खेलना । कभी खो खो , कभी कबड्डी तो कभी क्रिकेट खेलते बच्चे गलियों में दिखाई देते थे तो कभी पतंग को लूटने के चक्कर में किसी के भी खेत में घुस जाना । और जब तक कोई देख कर दो चार गलियां न दे दे तब तक वहीं खेतों में मस्ती मचाना ।
यहाँ तक की दिन भर घर से बाहर धुप में खेलना और श्याम होने पर फिर से खेलने चले जाना , बस कुछ यूहीं बचपन गुजर जाना न पढाई का ज्यादा बोझ और न ही भाविष्य की कोई ज्यादा चिंता ।
पर बदलते दौर ने और आधुनिक विज्ञान ने न केवल समय में काफी बदलाव लाया है बल्कि साथ ही साथ इसका प्रभाव लोगों में तो दिख ही रहा है साथ ही साथ बच्चों पर भी इसका काफी प्रभाव पड़ा है । हालांकि तकनिकी के विकास ने मनुस्यों का कार्य काफी आसान किया उन्हें कई सारी सुविधाए प्रदान की है , समय की बचत हुई है फिर भी आधुनिक और तकनिकी विकाश के कारण कही न कही बच्चों का बचपन जैसे कही खो सा गया है । आज छोटे से बच्चे के हाथ में स्मार्ट फ़ोन से लेकर टेबलेट और लैपटॉप आ गए है । आज न तो बच्चे बच्चे पतंग लूटते नजर आते है और न ही गलियों में खेलते और शोर मचाते । बस फ़ोन पर चौबीस घंटे लगे रहते है न उन्हें घर वालों से कोई मतलब होता है न ही बाहर वालों से ।
कुछ बच्चे तो ऐसे भी है जिनका बचपन गरीबी के कारण कहीं को जाता है , आज कॉम्पिटिशन इतना बढ़ गया की बस सबको आगे निकलने की पड़ी होती है । 3 साल की उम्र में बच्चा स्कूल जाना सुरु कर देता है , वो भी अपने वजन से दुगुनी वजन की किताबें लेकर , पहले स्कूल फिर होम वर्क फिर ट्यूशन और अगर इस बीच में थोड़ा टाइम बच जाए तो फ़ोन में गेम खेलना बस इसी में बच्चे का पूरा बचपन निकल जाता । बाहरी खेल कूद न होने के कारण और चौबीस घंटे फ़ोन में और टेबलेट में लगे रहने से इसका बच्चो के शरीर पर काफी बुरा प्रभाव भी पढता है छोटी सी उम्र में बच्चों के बड़े बड़े चश्मे लग जाते है शाररिक खेल कूद न होने के कारण कई सारी बीमारियां इस छोटे से शरीर में घर कर लेती है ।
जब आज की स्थिति पर नजर जाती है तो लगता है कि पहले के दिन भी क्या दिन थे , न बच्चो पर पढाई का इतना बोझ और न ही फ़ोन आदि में बच्चों की इतनी रूचि , बस अपने बचपन को पूरी तरह से जीना ।
हालांकि ये भी जरुरी है कि बच्चों को अच्छी शिक्षा प्राप्त हो सके परन्तु इसका मतलब ये नही है कि जीवन की इस लंबी दौड़ बच्चों का बचपन कही गम न हो जाए ।

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