विकास की राह पर अभी पहाड़ चढ़ना बाकी

आज उत्तराखंड अपने 16 साल पूरे करके 17 वें साल में प्रवेश करने जा रहे है , इन 16 सालों में उत्तराखंड ने कितना विकास किया ये सब हम भली भांति जानते है ।
उत्तराखंड राज्य का निर्माण यह सोचकर किया गया था कि पहाड़ों पर बसे लोगों और उस छेत्र का भी विकास हो सके और वहां के लोगों को भी विकास की मुख्य धारा जोड़ा जाए । लेकिन हाल यह है कि विकास की तो बात तो दूर इन जगहों पर हाल पहले से भी ज्यादा बुरे होते जा रहे है राज्य स्थापना का मुख्य कारण पलायन को रोकना था लेकिन हाल ये है कि 16 साल होने के बाद भी सरकार पलायन को रोकने में विफल रही है यही कारण है कि पहाड़ लगातार ख़ाली होते जा रहे है यहाँ न तो शिक्षा के लिये विद्यालय उपलब्ध है और न ही अस्पतालों का कोई नामो निशान यदि कहीं पर है भी तो उनके है हाल इतने बुरे है कि अस्पतालों में डॉक्टर नही और स्कूलों में टीचर नही ।
16 सालों में हमने क्या खोया और क्या पाया यह एक बड़ा सवाल है , यदि देखा जाए तो इतने सालों में हमने पाया कम पर खोया बहुत ज्यादा है फिर चाहे वह किसी भी छेत्र में हो
उत्तराखंड गठन के बाद कई सारे ऐसे उद्योग थे जिनमें ताले लटक गए कई नामी गिनामी कंपनियां बंद हो गई । रॉडों का हाल ये है कि सालों से प्रोजेक्ट लटके पड़े है पर भरस्टाचार है कि थमने का नाम नही ले रहा सब अपना अपना हिस्सा लेकर उड़ जाते है और कार्ययोजनाएं धरी की धरी रह जाती है ।
प्रकर्ति से इतना छेड़ छाड़ हो रहा है कि धीरे धीरे प्राकर्तिक संपदा को भी काफी नुकसान हो रहा है जंगलो को काटकर अवैध रूप से निर्माण कार्य हो रहा है नदियों को रोककर बाँध बनाये जा रहे है और प्रकर्ति से जितना हो जाए उतना छेड़छाड़ की जा रही है जिसके कई प्रभाव हमें भी हमें देखने को मिल रहे है 2013 कि आपदा इन सबका एक जीता जागता प्रमाण है जिसमे हजारो लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी ।
यहाँ विकास भले ही न दिखाई दिया हो पर प्रदेश में राजनीति खूब उभर कर आई यहाँ राजनीति के दौर ने तो बाकी सभी राज्यो को पीछे छोड़ दिया , चंद रुपयों के लिए लोगों को दल बदलते देखा विधायकों की खरीद फरोद हुई हो प्रदेश में पहली बार राष्ट्रपति शाशन लगा ।
हर बार चुनाव आने से पहले लोगों से बड़े बड़े वाडे किये जाते कोई बोलता हम गाओं की तस्वीर बदल देंगे तो कोई न जाने गाओं के लोगों को बड़े बड़े सपने दिखाकर फसा लेते है और बेचारे मासूम लोग इनकी बातों में आकर इन्हें वोट दे देते है परंतु बाद में न तो नेताजी गांव में दिखाई देते है न उनके वादे ।
उत्तराखंड के इस बड़े इतिहास में ऐसा कोई भी काम नही किया गया जिससे कहा जाए की उत्तराखंड ने कुछ पाया है शहरो में थोड़ा बहुत विकास हुवा है पर गाओं के हालात तो पहले से भी ज्यादा बत्तर होते जा रहे है । ऐसे में आप खुद ही अन्दाजा लगा सकते है कि इन 16 सालों में यहाँ के लोगों ने क्या खोया और क्या पाया ।
पहाड़ लगातार खाली हो रहे है जिसका कारण है सुविधाओं का गांव तक न पहुंचना विकास के लिए पैसे आवंटित तो होते है पर सब अपना अपना हिस्सा लेकर अलग हो जाते है और विकास के नाम पर बचता है तो बस बाते और कुछ नही इसी लिए यदि उत्तराखंड को विकास की राहों पर आगे ले जाना है तो हमें गाओं से सुरुवात करने की जरुरत है ।

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