पटरी से उतरती जिंदगियाँ ।

बातें तो बड़ी बड़ी , लेकिन हकीकत में काम कुछ नही ।
कुछ ऐसा ही हाल है भारत का , एक तरफ तो हम देश में बुलेट ट्रेन लाने की बात करते है ,अपनी रेल व्यवस्था को और अच्छा बनाने की बात करते है लेकिन वहीँ दूसरी और वर्तमान समय में इन व्यवस्थाओं के हाल इतने बुरे है कि कुछ अधिकारियों और लोगों की लापरवाही के कारण कई जिंदगियां रेल की इन्ही पटरियों से निकलकर मौत के मुंह में चली जाती है । ऐसी ही एक लापरवाही ने 150 से ज्यादा लोगों की जिंदगियों को अपनों से दूर कर दिया , क्या हो जाता अगर ट्रैन में जो खराबी आई उसे ठीक कर लेते । कोई बात नही थोड़ा टाइम ही तो लगता, थोड़ी देर ही तो ट्रैन लेट होती , पर कम से कम हम उन 150 लोगों को तो शायद बचा लेते जो हमारे बीच में नही रहे ।
हालांकि कानपूर में हुई इस घटना के कारण कोई भी होंगे पर इस घटना ने कई घरों के चिरागों को बुझा दिया साथ ही एक बार फिर हमारी रेल व्यवस्था की भी पोल खोल कर रख दी है । ये इकलौती घटना नही है जब किसी की लापरवाही या फिर व्यवस्थाओं की कमी के कारण इतना बड़ा रेल हादसा हुवा हो इससे पूर्व भी हम ऐसी ही कई घटनाओं के दर्द झेल चुके है जिसमे कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा हो ।
पर अफ़सोश की बात ये है कि हालात तब भी वैसे थे और आज भी वैसे है ,  इतना बड़ा रेल नेटवर्क होने के बावजूद भी इस तरह की घटनाओं का सिलसिला नही रुकता , रेल लाइन तो बिछा दी जाती है पर उनकी मरम्मत का काम नही किया जाता , रेल यातायात के लिये एक बहुत बडा बजट तो पेस कर दिया जाता है परंतु उनका इस्तेमाल ना तो जर्जर पड़े रेल ब्रिज को बनाने में किया जाता है और न ही ट्रेनों के देख रेख में , क्या कारण है कि हर दूसरे दिन खबर आती है कि इस ट्रेन का यह डिब्बा पटरी से उतर गया या फिर यहाँ पर दो ट्रेनें आपस में बीड़ गई और इसमें इतने लोगों की मौत हो गई ।
कानपुर में हुवा यह रेल हादसा हमारी कमजोरियों को दीखता है यह दिखाता है कि किस तरह से कुछ लोगों की लापरवाही का अंजाम हर उस व्यक्ति को करना पड़ता है जो उस ट्रैन में सफर कर रहा है । कानपूर रेल हादसे में न जाने कितने लोगों ने अपनों को खोया लोगों की लाशों पर चढ़कर बाकी लोगों की जान को बचाया गया , सोचिये किया होगा वो मंजर जहाँ हर और लाशें ही लाशें बिछी हो और उन लाशों के ढ़ेर से बाकी बची जिंदगियों को बचाया जा रहा हो , हादसा रात के 3 बजे के आसपास हुवा इसलिए मदद पहुंचने में समय लगा , अगर शायद मदद थिंदी पहले पहुँच जाती तो और लोगों को बचाया जा सकता था या फिर अगर लापरवाही नहीं पार्टी होती तो भी शायद यह हादसा टल सकता था । पर कुछ भी हर एक हादसा अपने पीछे कई सवाल छोड़ कर चला जाता है , पर यह निर्भर करता है हम उन घटनाओं से कितना सीखते है और अपनी गलतियों को कितना सुधारते है ।

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