यदि राजनीति ही चलेगी तो देश कैसे बढ़ेगा ?

राजनीति , राजनीती और केवल राजनीति। किसी ने सही ही कहा है कि राजनीति में कोई किसी का सगा नही होता बस अपनी राजनीति चमकाने और कुर्सी के लालच के कारण न ये अपना देखते है और न पराया , न इनके लिए देश महत्वपूर्ण होता है और न ही देश का विकास , यही कारण है कि यदि कोई निर्णय सरकार लेती है और इन्हें लगता है इस निर्णय से उनको भी परेशानियां झेलनी पड़ सकती है तो फिर क्या आ जाते है लोगों के बीच उन्हें भड़काने के लिए और हमारी बेचारी आम जनता इनके बहकावे में आकर अपना ही नुकशान कर लेती है । 

आखिर यही सब तो हो रहा है आजकल जब सुरु से लेकर कालेधन को ख़त्म करने के लिए आम लोग और सभी राजनितिक दल सरकार पर दबाव बना रहे थे और आखिरकार जब सरकार ने कालेधन को रोकने के लिए नोटेबन्दी का फैसला लिया तो फिर उसका विरोध क्यों , जब लोग बिना किसी विरोध के इस फैसले का स्वागत कर रहे है तो फिर क्यों जबर्दस्ती उन्हें भड़काकर उनका मंद वाश किया जा रहा  है ? शायद ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि वो लोग भलीभांति जानते है कि इस फैसले से आम लोगों को तो कोई नुक्सान नही होगा पर जिन्होंने आने वाले चुनावो के लिए और सत्ता में रहकर कालेधन की कमाई की थी , एकदम से लिए गए नोटबंदी के फैसले ने उन्हें कहीं का नही छोड़ा इसी लिए बार बार अपनी राजनीति के लिए और अपने को बचाने के लिए आम लोगों का सहारा लिया जाता है , और बेचारे आम लोग इनकी बातों पर आकर यही भूल जाते है कि वो खुद का नुक्सान करवा रहे है ।
नोट बंदी का फैसला देश के इतिहास में एक बहुत बड़ा फैसला है इसके कई दूरगामी परिणाम होंगे जिन्होंने सालों से काला धन छुपाकर रखा था आज उस काले धन की कीमत ख़त्म हो गई , आम लोगो का लाखो करोडो रुपए वापस बैंको में आ रहा है , देश की आर्थिकी मजबूत हो रही है , कालेधन रखने वालों की नींदे उडी हुई है और आपको फिर भी लगता है कि यह फैसला गलत है , हालांकि थोड़ा व्यवस्थाए और अछि हो सकती थी जिनसे लोगो को परेशानी न हो , इस बात को गोपनीय रखना भी जरुरी था नही तो इस कदम का कोई फायदा नही था लोगो को पता चल जाता और वो कालेधन को ठिकाने लगा देते  ।
भले ही लोगों को थोड़ी परेशानी होगी क्योंकि बहुत बड़ा फैसला है क्योंकि अगर हम चाहते है कि भरस्टाचार ख़त्म हो हो किसी कोई कोई परेशानी न हो तो ऐसा तो कोई तरीका नही है इसलिए यदि देश से भरस्टाचार की जड़ो को उखाड़ना है तो यह तभी सफल हो सकता है जब सभी का सहयोग सरकार और बैंको को मिले । क्योंकि कहीं न कही से तो भरस्टाचार के खिलाफ कोई कदम उठाना ही था और जो भी राजनीति दल इस फैसले का विरोध कर रहे है समझ नही आता वो भी तो सरकार में थे यदि उनके पास भरस्टाचार को ख़त्म करने के लिए इससे अच्छा कोई उपाय है तो उन्होंने उस समय उसे क्यों नही अपनाया उनके पास भी वो पावर थी की वो कोई भी कदम उठा सकते थे तो क्यों नही उठाया और यदि अब कोई इस तरह के कदम उठता है जिससे कालेधन पर रोक लगे और देश विकास करे तो मुझे लगता है हमें उनका सहयोग करना चाहिए न की राजनीति करके लोगो को भड़काना , और अगर राजनीति ही करनी है तो बहुत से ऐसे मुद्दे है जो लटके पड़े है उन पर राजनीति की जा सकती है , परन्तु यदि कोई कदम देश हित के लिए जा रहे है उन फैसलों में हमें मिल जुलकर एकता का परिचय देना चाहिए ।
समझ नही आता हम इतने न समझ कैसे हो सकते है कोई भी हमें आकर किसी के भी खिलाफ भड़काके चला जाता है और हम लग पड़ते है उस फैसले का विरोध करने पर वो लोग आराम से टीवी के सामने बैठकर हमारी इस बेवकूफी पर हँसते रहते है , और दोष उनका भी नही है जब हम लोग खुद जागरूक नही है और अपनी जिम्मेदारियां नही समझते तो औरों को क्यों दोष दे ।  इसलिए हमें खुद को जागरूक होना पड़ेगा और निर्णय लेना पड़ेगा की क्या सही है और क्या गलत तभी जाकर देश आगे बढ़ सकता है । अगर बात रही राजनीति की तो वो तो यूँही चलती रहेगी अगर आज हम मिलकर साथ आ भी गए तो फिर यही राजनीति हमारे बीच में लकीरे पैदा कर देगी और हम फिर लड़ने लगेंगे , तो बात तो यही है कि यअदि राजनीति ही चलेगी तो देश तो कभी नही चल पाएगा ।

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