सावन के झूलों ने मुझको बुलाया '' ....... अब यादों में ही रह गए है सावन के झूले
प्रकर्ति भगवान द्वारा रचित वह सुन्दर परिकल्पना है जो स्वयं में अनेकों रहस्य और सुंदरताओं को समेटे हुवे है , प्रकर्ति की इन्ही सुंदरताओं में से एक है सावन का महीना सावन के सुरु होते ही प्रक्रति में एक अलग सी उम्मन्ग आ जाती है ,हरयाली से जंगल के जंगल हरे भरे हो जाते है नए नए फूल खिलना सुरु होते है , सावन के इस महीने में हर कोई इन्ही रंगों में रंग जाता है,।जिसमे सावन के अनेकों रूप हमे दिखाई देते है ।जहाँ एक और सावन के महीने में पूजा पाठ एवं धर्म कर्म का अत्यधिक महत्व होता है उसी प्रकार प्रकर्ति के अनुपम रूप और सुंदरता को देखने का यह सबसे उपयुक्त समय होता है ।
पहले वह भी एक समय था जब सावन के सुरु होते ही पेड़ों के नीचे झूले सज जाते थे । और चाहे बच्चे हो या बुड्ढे हर कोई सावन की उस रिम झिम करती बारिश में सावन के झूले का आनंद उठाते थे ।
परन्तु अफ़सोश समय के बदलते चाल में वो सावन के झूले ना जाने कहाँ खो गए है, सावन के इन झूलों का प्रयोग फ़िल्मी दुनिया में भी बहुत हुवा, 80 और 90 के दशक में फिल्म निर्माताओं ने भी फिल्मो में सावन के इन झूलों को बहुत महत्व दिया, सावन के इन्ही झूलो को लेकर कई सारे गानों की रचनाये की गई जो सफल भी साबित हुवे । जिसमे "सावन के झूलों ने तुझको पुकारा "
और "लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है ""आदि प्रचलित गाने आज भी लोगों की झुबान पर है ।
पर अफ़सोस समय के साथ साथ वो यादे भी न जाने कहाँ सिमट कर रह गईं । अब न कही वो झूले नजर आते है और न ही वह समय , शायद लोगों की दौड़ती भागती जिंदगी में इन सब के लिए समय बचा ही नही ।
आज सावन तो आता है परंतु सावन का इन्तजार करते वो पेड़ों पर बंधे झूले नही दिखते । एक वो दौर था और आज ये दौर है ।
पहले वह भी एक समय था जब सावन के सुरु होते ही पेड़ों के नीचे झूले सज जाते थे । और चाहे बच्चे हो या बुड्ढे हर कोई सावन की उस रिम झिम करती बारिश में सावन के झूले का आनंद उठाते थे ।
पर अफ़सोस समय के साथ साथ वो यादे भी न जाने कहाँ सिमट कर रह गईं । अब न कही वो झूले नजर आते है और न ही वह समय , शायद लोगों की दौड़ती भागती जिंदगी में इन सब के लिए समय बचा ही नही ।
आज सावन तो आता है परंतु सावन का इन्तजार करते वो पेड़ों पर बंधे झूले नही दिखते । एक वो दौर था और आज ये दौर है ।
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